गतांश से आगे.....अध्याय सत्रह- गृहसमीप वृक्षादि विचार- भाग पांच
वास्तुमंडल से वृक्ष के सामीप्य के सम्बन्ध
में सीधा सा नियम है कि दिन के दूसरे और तीसरे प्रहर(सूर्योदय से लेकर तीन घंटे तक
प्रथम प्रहर)की छाया यदि किसी भवन पर पड़ती हो तो रोग,शोक और दुःख का कारण बनता
है।यही नियम समीप के भवन,मन्दिर,पड़ोस की ध्वजा आदि का भी है।यथा-
प्रथमान्तयामवर्ज्यं
द्वित्रिप्रहरसम्भवा।
छायावृक्षगृहादीनां सदा दुःखप्रदायिनी।। (वास्तुरत्नाकर ६-४३)
गृहवाटिका
लगाना हो तो पूर्व,उत्तर,और पश्चिम का कुछ भाग ही श्रेष्ठ होता है। इसके
विपरीत उचित नहीं।बड़े पौधे तो लगाये ही न जायें,मध्यम काय वृक्ष भी निषिद्ध
क्षेत्रों में लगाने से बचें।पौधों की जाति,गुण,प्रभाव आदि का ज्ञान करके ही लगाना
चाहिए।प्रायः अनजाने में,या अल्पज्ञता वश पौधारोपण का गलत चुनाव कर लेते हैं,जिसका
बड़ा ही अशुभ प्रभाव पड़ता है।जैसे आम,केला आदि लगाना अच्छा माना जाता है,किन्तु
ये दोनों सन्तान पक्ष के लिए हानि कारक हैं।जामुन भी इसी क्षेणी में है,बल्कि इनसे
अधिक हानिकर।इस तरह के पौधे वास्तुमंडल के परिसर (गृहवाटिका)में यदि लगाना हो तो
मुख्यवास्तुक्षेत्र और वाटिकाक्षेत्र के बीच कम ऊँचाई की विभाजक दीवार
अवश्य बना दें।यह नियम विशेष कर आम,जामुन और केला के लिए कहा जा रहा
है।अनार,अमरुद, पपीता,शरीफा,सपाटू,आदि फलदार पौधों के लिए नहीं।इमली को सीधे तौर
पर अशुभ की संज्ञा दे दी जाती है।वास्तुसौख्यम् ३९ में कहा गया है-
मालतीं मल्लिकां मोचां
चिञ्चां श्वेतां पराजिता।
वास्तुन्यां
रोपयेद्यस्तु स शस्त्रेण निहन्यते।।
अर्थात् मालती,मल्लिका,कपास,इमली और श्वेत अपराजिता
को जो वास्तुमंडल में स्थान देता है,वह शस्त्रघात से मारा जाता है; किन्तु अन्य मत
से नैऋत्यकोण में इमली अति शुभद है।इसी भांति
मालती,मल्लिकादि को देवपूजनार्थ वाटिका में स्थान देते हैं तो शुभ है,किन्तु
गृहस्थ की वाटिका में शुभ नहीं है।ध्यातव्य है कि प्रायः वस्तुयें स्थानानुसार
शुभाशुभ फलदायी होती हैं।यानी एक स्थान पर जो पौधा अशुभ है,वही दूसरे स्थान पर शुभ
हो जाता है।
आगे एक चित्र और सारणी के माध्यम से
गृहवाटिका स्थापन के क्षेत्रों को और अधिक स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है, साथ
ही एक सारणी भी दी जा रही है,जिसमें वृक्षों के शुभ स्थान को स्पष्ट किया गया है।गृहवाटिका-क्षेत्र
वाले चित्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि उत्तर-पूर्व की तुलना में
दक्षिण-पश्चिम में रिक्त स्थान कम हो।
क्रमांक
|
पौधा
|
दिशा
|
फल
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१.
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वट(वरगद)
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पूरब
|
अतिशुभ
|
२.
|
अश्वत्थ(पीपल)
|
पश्चिम
|
अतिशुभ
|
३.
|
प्लक्ष(पांकड़)
|
उत्तर
|
अतिशुभ
|
४.
|
उदुम्बर(गूलर)
|
दक्षिण
|
अतिशुभ
|
५.
|
कदम्ब
|
द.नै.
|
अतिशुभ
|
६.
|
केला
|
उ.ई.
|
अतिशुभ
|
७.
|
दाडिम(अनार)
|
आग्नेय
|
अतिशुभ
|
८.
|
पीनस(कटहल)
|
पू.ई.
|
अतिशुभ
|
९.
|
आम
|
पू.ई.द.
|
अतिशुभ
|
१०.
|
आमला
|
ईशान
|
अतिशुभ
|
११.
|
विल्व(बेल)
|
वायव्य
|
अतिशुभ
|
१२.
|
शमी
|
पश्चिम
|
अतिशुभ
|
१३.
|
जम्बु(जामुन)
|
द.नै.
|
अतिशुभ
|
१४.
|
चिंचा(इमली)
|
नैऋत्य
|
अतिशुभ
|
१५.
|
अगस्त
|
उ.वा.
|
शुभ
|
क्रमशः....
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